अश्क़ और ज़ुल्फ़ें

आज क्या लिखू उनके लिए,
वो तो भगवान की खुद लिखी हुई कायनात हैं!
लिखने को तो शायद अल्फ़ाज़ ना हो हमारे पास,
उनकी आखें उनकी ज़ुल्फ़ों को लिखने बैठे अगर हम,
शायद लिखते लिखते उमर गुजर जाये,
उनकी शरबती आखों के वो अश्क़ जो कही भी चांदनी बिखेर दें,
नादाँ हैं वो जो अश्क़ को ऐसे ही जाया करते हैं,
उनकी रेशमी ज़ुल्फ़ें, किसी को भी फिसल जाने को मजबूर कर दें!!
यूँ तो बयाँ करते जाएँ हम उनकी कायनात को,
लेकिन डर है शायद वो हैरान ना हो जाएं!!!
---- Coolnittian की इन्तिहाँ

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